तन्हा तन्हा
तन्हा तन्हा
तन्हा तन्हा सा है दिल
तन्हा तन्हा से है हम
फिर भी हर पल
खुश रहते हैं हम।
दर्द भुला कर अपने
तन्हा कौन नहीं है ज़माने में
ये जानते हैं हम।
हर कोई छुपा कर दर्द
अपने चेहरे पर
चेहरा लगाए हुए हैं।
झूठी हँसी हँसना
आदत बन गयी है
सब की इस जहाँ में।
तन्हा तन्हा ही सही
तन्हा तन्हा हमें रहना
रास आ गया है।
चाँद सितारों और
दरों दीवार से
बातें कर लेते हैं।
तन्हा होने का है
अपना ही अलग मज़ा
ना किसी की किटपिट
ना ही किसी का रोना धोना।
ना ही किसी के शिकवे
ना ही शिकायत...।।