मुझे तुम्हारी ये आलीशान महलों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
मुझे तुम्हारी ये आलीशान महलों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
मुझे तुम्हारी ये आलीशान महलों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
अमीर जेबों और ग़रीब दिल वालों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
चलो घने जंगल में कहीं किसी पेड़ के नीचे घर बसा लें हम-तुम
इंसान को जानवर बनाती कारख़ानों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
ना क़ाबिले ऐतबारों की इस जमात को देखकर कोफ़्त होती है
गले मिलकर ख़ंजर घोंपते दग़ाबाज़ों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
या तो मेरी आँखे नोच लो या हर शक्स से छीन लो उसके मुखौटे
मासूम चेहरे और घिनौने ख़्यालों की दुनिया अच्छी नहीं लगती
बदबू बढ़ने लगी है ज़रूर कोई ज़मीर सड़ रहा है कहीं अधिराज
अब इसे जला दो कि ज़िंदा लाशों की दुनिया अच्छी नहीं लगती