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S Ram Verma

Drama

5.0  

S Ram Verma

Drama

मिटटी, धूप और पानी !

मिटटी, धूप और पानी !

1 min
355



कई बार और कई ऐसी जगह भी,  

अंकुरण मैंने देखा है;

जैसे दो ईंटो के बीच से अंकुर को, 

फूटते हुए मैंने देखा है;


ऊँची-ऊँची दीवारों पर पीपल को भी,  

उगते हुए भी मैंने देखा है;

मेरी नज़र में ये मिलन बस यही कहता ,है

जंहा जरा सी मिट्टी को मैंने देखा है; 


जहाँ जरा सी धूप को मैंने देखा है,

जहाँ जरा सी नमी को मैंने देखा है; 

वहाँ वहा एक अंकुर के अस्तित्व को, 

भी मैंने देखा है; 


जहा भी मिटटी, धूप और पानी को, 

एक साथ देखा है मैंने, 

 स्त्री को मिट्टी, पुरुष को धूप

प्रेम को पानी,

होते हुए देखा है मैंने !


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