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कवि अखिलेश ठाकुर

Drama Tragedy

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कवि अखिलेश ठाकुर

Drama Tragedy

सरहद पे दुशमन की अब ज्यादती है

सरहद पे दुशमन की अब ज्यादती है

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सरहद पे दुशमन की अब ज्यादती है।

घायल परेशान माँ भारती है।

वो बेटो की मौतो पे रोती बिलखती।

संसद भवन का मुख ताकती है।


कह रही है की कुर्बान बेटे हुए।

वो आये तिरंगा लपेटे हुए।

उनकी शहादत ना बेकार जाए।

दुशमन की हसरत अब हर जाए।

मेरी भी सुनले ऐ खादी कहानी।

दुशमन से सरहद हुई पानी पानी।

सरहद पे दुशमन...


मै सोने की चिड़िया के जैसी थी दिखती।

मगर अब सरेआम बाजार बिकती।

इधर घूमती हूं उधर घूमती हूं ।

शहीदों हरपल तन चूमती हूं ।


आदेश कोई अगर ऐसा होता।

फफक कर के दुश्मन सरहद पे रोता।


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