प्रेम
प्रेम
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वो प्रेम कहां, वो तो धोखा है,
जो उद्दीप्त लालसा का भूखा है।
प्रेम तो है ह्रदय की फुव्वार,
प्रेम ही प्रकृति का आधार॥
प्रेम में न लालसा, न हो अत्याचार ,
प्रेम में गर वासना ,तो है घृणित व्यवहार।
लालसा से ना जुड़ सकेंगे, ह्रदय के तार,
प्रेम तो है, निशच्छलता का व्यवहार॥