श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि
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ज़िंदगी के उन पलों में
जब हम ख़ुद को
बहुत कमज़ोर पाते हैं
अक्सर ही
जिनपे हमें
सबसे ज्यादा भरोसा होता है
वही हाथ
हमें ही
तोड़ते हुऐ पाऐ जाते हैं
दुख होता है
दर्द भी होता है बहुत
टूटती हुई उम्मीदों के साथ
कुछ और बिखर जाता है
अपना बिखरा हुआ वज़ूद
कोशिश करो भी समेटने की
तो हाथ लगते हैं
चंद टुकड़े ही
अपने वज़ूद के
मैं
पतझड़ के पेड़ की तरह
नंगी टहनियाँ लिऐ
पल पल जलते हुऐ
दोपहर की करारी धूप में
बेसहारा
देखता हूँ
सोचता हूँ
और फिर ख़ामोशी से
सूखी हुई पत्तियों की तरह
वक़्त के बहाव मे बह गऐ
मौका परस्त सहारों की विदाई पर
मुस्कुराते हुऐ
अर्पित कर देता हूँ
अपनी श्रद्धांजलि ....