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हरीश सेठी 'झिलमिल'

Children Inspirational

5.0  

हरीश सेठी 'झिलमिल'

Children Inspirational

आत्म संवाद

आत्म संवाद

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नंगे पाँव

पैबंदी फ्रॉक

बिखरे बाल

बहन की देखभाल

क्या यही है मेरी कथा।


किसे सुनाऊँ अपनी व्यथा

माँ को तो सुबह बोला था

अपना मन झिझकते खोला था

माँ मुझको नई फ़्रॉक दिला दो

मैं भी पढ़ने जाऊँगी।


पढ़ लिख कर माँ मैं भी

खूब नाम कमाऊँगी

माँ बाबा तुम इतनी मेहनत करते

फिर भी पेट हमारे आधे ही क्यूँ भरते।


हम इतनी ईंटें बनाते,

लोगों के घर बन जाते हैं

पर हमारे ही घर क्यों नहीं बन पाते हैं

माँ ने मुझे बताया था,

कुछ ऐसे ही समझाया था।


अभी तू छोटी है,

समझ नहीं पाएगी

जब बड़ी हो जाएगी

तो खुद समझ आएगी।


बस एक बात ध्यान रखना,

इधर उधर मत जाना

मुन्नी रोये तो चुप करवाना,

शीशी से तुम दूध पिलाना।


मैं थोड़ी सी डोली थी,

माँ से यूँ बोली थी

माँ मैंने किया खूब अभ्यास

मिट्टी के बनाए हैं सुंदर गिलास।


मैं तुम्हारा हाथ बटाऊँगी

ईंटें भी मैं खूब बनाऊँगी

मेरे माँ बाबा बहुत न्यारे

मुझको लगते हैं बहुत प्यारे

नई फ़्रॉक लाएँगे

स्कूल में प्रवेश दिलाएँगे।।


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