माँ सुनना
माँ सुनना
मिन्नत करूँ ये बार बार माँ सुनना
नही छोड़ना मुझे बाबुल का अंगना।
मुझको है री प्यारी
बाबूल के आंगन की फुलवारी
अभी तो मैं खिली नही
मैं भी तो हूँ तेरी क्यारी की
अधउमली कली।
पेड़ पौधै है तु सिचे
दिन रात आंगन के
काहे मुझे उखाड फेके
पनपू कैसे दुजे आंगन में।
गढ़ी है मेरी सारी जड़ें
बाबूल के अंगना मे
कैसे जी पाउंगी मैं काट जड़ें।
पिया के अधसिचे आंगन मे
क्या मैं बोझ हूँ माँ तेरे सर पे
या निकल चुकी हूँ तेरे दिल से
डोली मे मढ़ अर्थी मेरी विदा करे है ऐसे
ना लौटना जिंदा वापस कभी कहती हो जैसे
मिन्नत करूँ ये बार बार माँ सुनना
नही छोड़ना मुझे बाबुल का अंगना।