क्या करूँ ज़िन्दगी?
क्या करूँ ज़िन्दगी?
तबियत अपनी जुदा सी हो गई है,
कुछ और नहीं दिल करता है।
दवा की अब ज़रुरत नहीं,
दुआ से मुंह मोरता हूँ।
तबियत अपनी जुदा सी हो गई है,
कुछ और नहीं दिल करता है।
ना ही उनकी तस्वीर बची है,
ना ही यादों का सहारा है।
अब हर पल उनकी यादों में,
दिल पागल अवारा है।
तबियत अपनी जुदा सी हो गई है,
कुछ और नहीं दिल करता है।
ज़िन्दगी जैसे जहर बनी है,
पर पीने से दिल डरता है।
इतनी जल्दी न कर पगले,
कोई और तुम्हें भी याद करता है।
तबियत अपनी जुदा-सी लगती है,
कुछ और नहीं दिल करता है।
जाने दे उनको जो छोड़ गये,
तू किसी और की चाहत लगता है।
ज़िन्दगी अपनी जुदा-सी हो गई है,
कुछ और नहीं दिल करता है।