तेरे साथ चलती हूँ !
तेरे साथ चलती हूँ !
तेरे साथ चलती हूँ तो जहान साथ आता है,
जब तुझ से दूर रहती हूँ तो जहान खाने को दौड़ता है;
मेरे दर्द के हवाले से कितना बा-ख़बर है वो,
मेरे बिन बहाए ही वो मेरी आँखों के आँसू चुन लेता है;
तीख़ी धूप ही तो मिलती है ज़र्द ज़र्द मौसम में;
कल किसने कहा की तीख़ी धूप में मोहब्बत निखर जाती है;
तू ही बता ख़ाक-ए-दिल तुझे ले कर अब कहाँ कहाँ जाऊँ,
हूँ तो मैं ज़मीं की मगर दिल आसमान पर आता क्यों है;
मैं हिज्र के सातों समुंदर को पार कर के आई हूँ,
गर अब भी तू ना मिला तो मरने का ख्याल आता है;
जब अदा-ए-वहशत के मिज़ाज़ पर मैं चलती हूँ;
तो गुलों से भरा सारा गुलिस्ताँ मुझ से रूठ जाता है,
नज़्म में मेरी जब भी ये जहान उसको देखता है,
इश्क़ और मोहब्बत से चिढ़ने वाला ये जहान जल-भून जाता है !