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S Ram Verma

Romance

1.4  

S Ram Verma

Romance

तेरे साथ चलती हूँ !

तेरे साथ चलती हूँ !

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तेरे साथ चलती हूँ तो जहान साथ आता है,

जब तुझ से दूर रहती हूँ तो जहान खाने को दौड़ता है;  


मेरे दर्द के हवाले से कितना बा-ख़बर है वो,

मेरे बिन बहाए ही वो मेरी आँखों के आँसू चुन लेता है; 


तीख़ी धूप ही तो मिलती है ज़र्द ज़र्द मौसम में;

कल किसने कहा की तीख़ी धूप में मोहब्बत निखर जाती है; 


तू ही बता ख़ाक-ए-दिल तुझे ले कर अब कहाँ कहाँ जाऊँ,

हूँ तो मैं ज़मीं की मगर दिल आसमान पर आता क्यों है;


मैं हिज्र के सातों समुंदर को पार कर के आई हूँ,

गर अब भी तू ना मिला तो मरने का ख्याल आता है; 


जब अदा-ए-वहशत के मिज़ाज़ पर मैं चलती हूँ; 

तो गुलों से भरा सारा गुलिस्ताँ मुझ से रूठ जाता है,  


नज़्म में मेरी जब भी ये जहान उसको देखता है,

इश्क़ और मोहब्बत से चिढ़ने वाला ये जहान जल-भून जाता है !


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