मेरी ख्वाहिश है महबूब मेरे
मेरी ख्वाहिश है महबूब मेरे
मेरी ख्वाहिश है महबूब मेरे
तुम इश्क़ के कुछ फूल चुनो
और बदन के चूल्हे पर चढ़ाकर
धीमी आंच पर गुनगुना होने तक पकाओ
मैं चुराकर तुम्हारे होठों से
फिर उसमें शहद मिलाऊंगा
तुम उंगलियों से नमक मिला देना
छानकर एक चीनी मिटटी के प्याले में
दोनों थोड़ा थोड़ा पी लेंगे
इस तरह मुकम्मल इश्क़ के सपने को
दोनों थोड़ा थोड़ा जी लेंगे ......
मेरी ख्वाहिश है महबूब मेरे
तुम इश्क़ की एक चादर बुनो
फिर कोहरे से ठिठुरती वादियों को
लपेटकर थोड़ा गर्म करो
फिर झरने के नीचे भीगकर
झरने की प्यास बुझाओ तुम
मिटटी में बनाकर बादल की तस्वीर
बारिश को नजदीक बुलाओ तुम
फिर एक टीन की छत के नीचे
आधे आधे भीगें हम तुम
एक दूजे से लिपट कर हम
एक दुसरे को पूरा सुखाएँ
मेरी ख्वाहिश है महबूब मेरे
तुम खुद पर एक कविता लिखो
जिसका हर एक शब्द एक किताब हो
जिसको सफे दर सफे मैं पढूं
हर सफे में जिसके सिर्फ
अपनी ही प्रेम कहानी हो
लफ्जों में चाशनी तुम घोलो
एहसासों में मेरी जुबानी हो
कहीं फिर किसी सफे पर तुम
मुझसे इस तरह मिलना कभी
कि फिर बिछड़ना कभी मुमकिन न हो
रात न हो कभी और कभी दिन न हो
हो तो सिर्फ एक डूबती हुई शाम
जिसमे हम तुम उभर आए एक दुसरे में
मेरी ख्वाहिश है महबूब मेरे
मेरी हर ख्वाहिश में तुम रहो
और ये ख्वाहिशे यूँ ही
दिल में चलती रहे पलती रहे
तुम भी ऐसी ख्वाहिशे ख़्वाबों में पाला करो
इश्क़ के कीमती सिक्कों को हवा में उछाला करो
मैं उन सिक्कों को चुनकर एक घर बनाऊंगा
जिसमे होगी तुम मैं और हमारी ख्वाहिशें ..