मैं तो उसके पास थी !
मैं तो उसके पास थी !
बहकी हुई नज़र थी लेकिन फिर भी उदास थी,
मय तो दूर थी उस से मगर मैं तो उसके पास थी;
बे-शक उसने बुलाया जिसे वो रूठी हुई एक रूह थी,
मगर शिकस्त-ए-दिल में मेरे ज़िंदा मगर एक आस थी;
गर तू मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छाया हुआ न था,
तो वो हस्ती कौन थी जो मेरे दिल में समायी थी;
अक्सर बारिशों में पेड़ों के पत्ते तो धुल ही जाते हैं,
मगर धरती कोख़ में अभी भी हरियाणे की प्यास थी;
कोंपलें जब भी आँख खोलती है तो क्या देखती है,
उनकी हद्द-ए-नज़र तलक उनकी ये ज़मीं बे-लिबास थी;
दिल में एक ताज़ा खिला हुआ गुलाब था,
मगर आँखों में सारी तमन्नाएँ उदास थी;
इन दिनों मैं अक्सर यही सोचती रहती हूँ,
वो कौन था जिस के लिए मेरे दिल में प्यास थी !