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S Ram Verma

Abstract

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S Ram Verma

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मैं तो उसके पास थी !

मैं तो उसके पास थी !

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बहकी हुई नज़र थी लेकिन फिर भी उदास थी,

मय तो दूर थी उस से मगर मैं तो उसके पास थी;


बे-शक उसने बुलाया जिसे वो रूठी हुई एक रूह थी,   

मगर शिकस्त-ए-दिल में मेरे ज़िंदा मगर एक आस थी;


गर तू मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छाया हुआ न था,

तो वो हस्ती कौन थी जो मेरे दिल में समायी थी;


अक्सर बारिशों में पेड़ों के पत्ते तो धुल ही जाते हैं,  

मगर धरती कोख़ में अभी भी हरियाणे की प्यास थी; 


कोंपलें जब भी आँख खोलती है तो क्या देखती है,

उनकी हद्द-ए-नज़र तलक उनकी ये ज़मीं बे-लिबास थी; 


दिल में एक ताज़ा खिला हुआ गुलाब था,

मगर आँखों में सारी तमन्नाएँ उदास थी;


इन दिनों मैं अक्सर यही सोचती रहती हूँ,

वो कौन था जिस के लिए मेरे दिल में प्यास थी ! 


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