बेवफाई
बेवफाई
हमदर्द इतना खुदगर्ज था
वक्त के आगे मजबूर होना था
इस कदर नकारा हुए रहे
बेसूर और बेवफा होना था
मंजिलो जब ख़त्म हुई
तेरी याद आना लाजमी था
जो हाथ कल तक था हाथों मे
उसे छोड जाना यूँ मंजूर न था
बोल के भी हम बोल ना पाये
सुन के भी आप सुन न पाये
परछाइयाँ भी अलग है आज
इतने अलग हो गये एक जिस्म के साये
बाते थी ही इतनी दिलचस्प
के इनामे खोना ही था
इस कदर नाकारा हुए
बेसूर और बेवफा होना था