रणभेरी
रणभेरी
बहुत बढ़ चुका पाप,
अब पुण्य का प्रताप हो।
सिहांसन हिल उठें नृपों के,
मनुज में ऐसा ताप हो।
बैठे कपटी, आदमखोर,
इंसानों के चोलों में।
आती नहीं लाज जिनको,
आबरू के खेलों में।
रोज लुट रहीं बेटियाँ,
सत्ता पर ना आँच है।
सफ़ेदपोश में देखो ,
बैठा कौन पिशाच है।
जड़ता की चादर को छोड़,
मशाल आजादी की जला डालो।
सफ़ेदपोश को उनका ही तुम,
अंतिम कफन बना डालो।
सत्ता के गलियारों में,
देखो महफिल सजतीं हैं।
आजादी के बाद से ही,
गरीबों की रोटी छिनती है।
ये ताकत नोटों की इनको,
वोटों से तुम्हारे मिल गई ।
और तुम्हारी इन आँखों की,
ज्योति चुपके से छिन गई।
इसलिए जवानों कहता हूँ ,
भूकम्पों का प्रबंध करो।
सत्ता के घड़ियालों का,
आज यही पर अंत करो।