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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama Inspirational

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama Inspirational

एक बूंद

एक बूंद

1 min
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गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी,

सोच रही थी कहां गिरूंगी

जो यहाँ से मैं निकल पड़ी।


गिरूंगी किसी अंगारे पर

या गिरूंगी धूल पर

जल जाऊंगी आग पर

या मिल जाऊंगी रेत में

मन में थी खलबली।


गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी।


समुद्र का क्या बढेगा

जो एक बूंद पानी गिरेगा

चातक पक्षी जो पियेगा

वो गायेगा गुण मेरा

उसके मन में थी हैरानी।


गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी।


होगा सो देखा जायेगा

यह सोच घर उसने छोड़ा

गिरते-गिरते उसने सोचा

गिरूंगी किसी मटकी में

जो होगी बिल्कूल खाली ।


गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी।


गिर रही थी तभी वहाँ

हवा का एक झोंका आया

दूर उड़ा कर ले गया

सीप के अधखुल मुख में

वह बूंद थी गिर पड़ी।


गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी।


स्वाति नक्षत्र था

मोती उसे बना दिया

भाग्य उसका बदल गया

सोच रही थी क्या बनूंगी मैं

बन गई कुछ और ही


गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी।


अक्सर घर से निकलते समय

सोचते रहते हैं लोग

मिलेगा क्या उन्हें

अपने इस जीवन में

किस्मत को समझते हैं बिगड़ी ।


गहरे घने बादलों में

एक बूंद थी अटकी।


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