। आशिक़ी ।
। आशिक़ी ।
क्या फर्क है तेरी बंदगी
और, मेरी आशिक़ी में ?
तू रोज़ भजन गाती है अपने कान्हा का
और, मैं ग़ज़ल अपने सजना का !
तो क्या फर्क हे तेरे भजन
और, और मेरे ग़ज़ल में ?
तेरे भजनों में तारीफ़ तेरे मोहन की है
मेरे ग़ज़लों में मेरे दिलबर की !
तेरी बंदगी भी तो आशिक़ी है तेरी
उस कृष्णा के लिए ?
जैसे मेरी आशिक़ी बंदगी है मेरी
अपने सजना के लिए ।।