वचन
वचन
कफ़न देख रहे हैं, आश्वस्त रहने दो ज़रा,
वचन दे रहे हैं तुम्हें, प्रेम रस बहने तो दो ज़रा ।
उम्मीद की छाँव में, विश्वास बढ़ने तो दो ज़रा,
विश्वास की उस नदिया में, धीरज सजने तो दो ज़रा,
धीरज भरे उन नैनो में, आस जगने तो दो ज़रा,
वचन दे रहे हैं तुम्हें, प्रेम रस बहने तो दो ज़रा ।
सम्पूर्णता की उस चादर में, निद्रा भरने तो दो ज़रा,
गहरी निद्रा के उल्लेख में, श्वास जगने तो दो ज़रा,
श्वास की उस बेला में, नेत्र बसाने दो ज़रा,
वचन दे रहे हैं तुम्हें, प्रेम रस बहने तो दो ज़रा ।
प्रेम के सागर में, एक डुबकी लगने दो ज़रा,
डूबती उभरती धड़कन में, हमें थकने दो ज़रा,
उसी थकान के साए में, खुद को ढलने तो दो ज़रा,
वचन दे रहे हैं तुम्हें, प्रेम रस बहने तो दो ज़रा ।
'वीर' नहीं है कवि , पर कभी वीर बनने तो दो ज़रा,
उसी 'ज़ारा' के समान , एक कदम बढ़ने तो दो ज़रा,
क़दमों का ठहराव , हाथों से गढ़ने तो दो ज़रा,
वचन दे रहे हैं तुम्हें, प्रेम रस बहने तो दो ज़रा ।