कवि
कवि
जब कभी होता कवि सम्मेलन
एक से बढ़कर एक कवि आते हैं ।
चलता जब कभी कविताओं का दौर
सबके माथे पर बल पड़ जाते हैं ।।
मैं भी जा रहा था भाग लेने
कि रास्ते में भोलूराम मिल गये ।
पता चला मैं भी एक कवि हूँ
गुस्से में मुझ पर पिल गये ।।
बोले भैया एक बात बताओ
काम धाम करते हो या नाही ।
जब देखो कविता लिखते हो
और सुनाते हो पब्लिक माही ।।
पब्लिक में भी वो बेचारे हैं
जो सारे किस्मत के मारे हैं ।
कौन सुनने वाला कौन सुनाने वाला
मिले हुऐ सारे के सारे हैं ।।
वही बासी तुम्हारी कविताऐं
कहाँ कहाँ से लिख लाते हो ।
सुनता नही कोई भी तुम्हारी
और पब्लिक में बकवास सुनाते हो ।।
तुम जानो और तुम्हारी कविताऐं
कैसे कैसे लफ्ज चुनकर लाते हो ।
लोगों को अपने काम से फुर्सत नही
और तुम शब्दोंं में उलझाते हो ।।
बोले एक बात बताओ भाई
क्या तुम लोग खाकर आते हो ।
एक बार बोलना क्या शुरू किया
नॉन स्टॉप बोलते जाते हो ।।
अरे खुद तो परेशान हो तुम
क्यों दूसरों को उकसाते हो ।
ताली कोई न बजाऐ तुम्हारे लिऐ
तो आपस में बजवाते हो ।।
'भोलूराम ' तो चल दिये
मुझे ऊपर से नीचे झाड़कर ।
उनके इस भाषण पर दोस्तों
मैनें लिखी ये कविता 'कवि ' शीर्षक डालकर ।।