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Vikram Singh Negi 'Kamal'

Drama

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Vikram Singh Negi 'Kamal'

Drama

कवि

कवि

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जब कभी होता कवि सम्मेलन

एक से बढ़कर एक कवि आते हैं ।

चलता जब कभी कविताओं का दौर

सबके माथे पर बल पड़ जाते हैं ।।


मैं भी जा रहा था भाग लेने

कि रास्ते में भोलूराम मिल गये ।

पता चला मैं भी एक कवि हूँ

गुस्से में मुझ पर पिल गये ।।


बोले भैया एक बात बताओ

काम धाम करते हो या नाही ।

जब देखो कविता लिखते हो

और सुनाते हो पब्लिक माही ।।


पब्लिक में भी वो बेचारे हैं

जो सारे किस्मत के मारे हैं ।

कौन सुनने वाला कौन सुनाने वाला

मिले हुऐ सारे के सारे हैं ।।


वही बासी तुम्हारी कविताऐं

कहाँ कहाँ से लिख लाते हो ।

सुनता नही कोई भी तुम्हारी

और पब्लिक में बकवास सुनाते हो ।।


तुम जानो और तुम्हारी कविताऐं

कैसे कैसे लफ्ज चुनकर लाते हो ।

लोगों को अपने काम से फुर्सत नही

और तुम शब्दोंं में उलझाते हो ।।


बोले एक बात बताओ भाई

क्या तुम लोग खाकर आते हो ।

एक बार बोलना क्या शुरू किया

नॉन स्टॉप बोलते जाते हो ।।


अरे खुद तो परेशान हो तुम

क्यों दूसरों को उकसाते हो ।

ताली कोई न बजाऐ तुम्हारे लिऐ

तो आपस में बजवाते हो ।।


'भोलूराम ' तो चल दिये

मुझे ऊपर से नीचे झाड़कर ।

उनके इस भाषण पर दोस्तों

मैनें लिखी ये कविता 'कवि ' शीर्षक डालकर ।।


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