ग़ज़ल
ग़ज़ल
दिल से तेरी यादों का,
उजाला नहीं जाता।
आँखों से हसीं ख़्वाब,
निकाला नहीं जाता।
चाहत में आपकी मेरा,
अंजाम ये हुआ,
दिल अपना ही मुझसे,
ये सम्भाला नहीं जाता।
सीखोगे कब दुनिया में,
रहने का अदब तुम,
बातों को इस तरह से,
उछाला नहीं जाता।
सब छोड़कर जाते हैं,
चले जायें ग़म नहीं,
खुद को किसी साँचे में,
अब ढाला नहीं जाता।
शोहरत की बुलंदी पे,
होने के बावजूद,
गुरबत में मिला पाँव का,
छाला नहीं जाता।