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Anupama Shrivastava Anushri

Others

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Anupama Shrivastava Anushri

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‘बारिश’

‘बारिश’

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पत्तों पर ठहरीकभी फिसलती हुई बूँदें, बड़ी सुहानी सी हैं,

इस खुशनुमा मौसम में दिल में ठहरी, कोई कहानी सी है। 

 

शीशे के बाहर के तूफ़ान से, भीतर के तूफ़ान की कुछ रवानी सी है,

बूंदों की रून-झुन के साथ, धडकनों की धुन, कुछ जानी- पहचानी सी है। 

 

बारिश के साथ गुम हो जाना, अपनी आदत पुरानी सी है,

एक लम्हे में कई लम्हात जी लेनामौसम की मेहरबानी सी है।

 

पिघलती बारिशों में दिल की जमीं, कुछ धुली -धुली सी है,

धुआं-धुआं से मौसम में, दिल की कली खिली सी है 

 

धरती पर बिखरती शबनम से ,कई आरजुएं मचली सी हैं,

सर्द हवाओं की दस्तक और, फ़िज़ाओं में कई खुश्बुएं मिलीं सी हैं।

 

गुनगुनाती वादियों ने छेड़ी, इक ग़ज़ल नयी सी है, 

प्रकृति को लेने अपनी पनाहों में, बारिश की लड़ियाँ  घिरी सी हैं।


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