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S Ram Verma

Others

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S Ram Verma

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रिश्ते नाते

रिश्ते नाते

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खिले हैं गांवों में भी, 

नफरत के फूल धीरे-धीरे|

 

जैसे पांव की धूल पहुँचती है, 

सरों तक बड़े धीरे-धीरे|

 

अभी कुछ महीने लगेंगे, 

उन पेड़ों पर फल आने में|

 

फिर बदल जायेंगे लोगों,  

के पाले भी धीरे-धीरे|


घाटे के कोई रिश्ते नाते,

उम्र भर कायम नहीं रहते|

 

टूट ही जाता है एक ना एक दिन,

झूठ का रिश्ता भले ही धीरे-धीरे| 


उसे जुर्म इकरार करने दो पहले, 

फिर हर इलज़ाम वो कर ही लेगा, 

कुबूल अपने भले ही धीरे-धीरे|

 

गर ऐसा ना हुआ तो ये धरती भी, 

एक ना एक दिन बंज़र हो जाएगी, 

गुलों की जगह बबूल ले लेंगे धीरे-धीरे|


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