एक रोज़ तो तैरना होगा
एक रोज़ तो तैरना होगा
कब तलक डूबोगे एक रोज़ तो तैरना होगा,
जब तलक आई नहीं छोड़ कैसे जाना होगा।
पोशाक से आबरू तो ढक जाएगी लेकिन,
मिली जो कभी नज़र दो टूक कलेजा होगा।
खुद से रूबरू तू नहीं है इसमें न तेरी ख़ता,
नज़र से एक रोज तो कोहरा छँटना होगा।
महज़ किरदार है तमाशा दिखाने के लिये,
पर्दा गिरते ही नागवार चेहरा बदलना होगा।
असल बात है कि शेर पढ़ना है पेशा मेरा,
जब तलक शमा जलेगी ग़ज़ल कहना होगा।।