मत करो बर्बाद देश की जवानी को
मत करो बर्बाद देश की जवानी को
तलाश रहे हैं आज हम उन फलों को
जो रस भरे सेहतमंद होते थे ।
किन्तु लद गए वह दिन
जब अमृती तरबूज मिलते थे ।
कहीं जामुन, कहीं अमरुद
कहीं रंग बिरंगे सेब गुणों से भरपूर मिलते थे ।
फलों का सेवन दिलों को खूब भाता था
जूठे बेर खाकर शबरी का
राम का मन फूला ना समाता था ।
नहीं अब राम, नहीं शबरी
ना ही उन फलों का ज़माना है
लालच और स्वार्थ ने फलों को भी ज़हरीला बनाया है ।
रसायन शास्त्र पढ़कर इन्सान ने ऐसा विष बनाया है
एक ही रात में फलों के आकार को दुगना बनाया है ।
डालकर रसायन ज़रूरत से ज़्यादा फलों को मीठा बनाया है ।
तरस आता है, नई पीढ़ी को हम क्या खिलाएँगे
बाल्यावस्था से ही उनके लहू में ज़हर मिलाएँगे ।
ज़हर बनाने वालों मत करो बर्बाद देश की जवानी को
तरस खाओ उन नादानों पर ।
जो अनभिज्ञ हैं फलों के असली स्वाद से
फलों के असली लाभ से ।
इन्सान ने भगवान को भी नहीं छोड़ा
प्रसाद में भी अपने स्वार्थ का ज़हर है घोला ।
रुग्णावस्था में फल वरदान होते हैं
रोगी के लिए अमृत का स्थान लेते हैं ।
लद गए अब वह ज़माने
जब फलों के आहार से लोग रोगमुक्त होते थे ।
किन्तु अब यह ज़माना है
फलों के आहार से लोग रोगलिप्त होते हैं ।
हम कहाँ से कहाँ आ गए
लालच के वशीभूत होकर
फलों को ऐसा बना गए
जो धीरे-धीरे डस रहे हैं
और लहू में विष भर रहे हैं ।