माँ कुछ ऐसी होती है
माँ कुछ ऐसी होती है
जब भी जिक्र
चलता है उसका
मेरे अश्क भर आते है
सोचकर उसके दर्द के बारे में
मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं
कुछ पल नही
कुछ दिन नही
रोज वो दर्द सहती है
हाँ "माँ कुछ ऐसी होती है "
चाहे गोरा हो या काला
उसका प्यारा होता है
कपूत बने या सपूत
उसका दुलारा होता है
अपनी फिक्र नहीं बस
उसकी फिक्र होती है
हाँ " माँ कुछ ऐसी होती है "
कभी मिटटी से सनी
तो कभी पानी में भीगती है
अपने लाल को मिले जिंदगी
इसलिए कभी खून से भी सींचती है
खुद रहकर भूखी कतरा कतरा संजोती है
हाँ " माँ कुछ ऐसी होती है "
अंधेरों में रौशनी दिखाकर
अपनी उंगली पकड़कर
राह की हर मुश्किल से बचाकर
मंजिल पर पहुँचना सिखाती है
कितना भी हो गर्दिशों का अँधेरा
खुद हर मर्ज़ की दवा होती है
हाँ " माँ कुछ ऐसी होती है "
अब और क्या लिखूं उसके बारे में
खुद पूरी कायनात है जो ,
मैं लिख नहीं सकता जिसे कभी
वो बेशकीमती किताब है वो
हर हालत में पास उसके ममता होती है
हाँ " माँ कुछ ऐसी होती है "