जारवा
जारवा
अंडमान के जंगल में, मिला मुझे एक जारवा;
मैंने पूछा उससे, "क्यों रहते हो जंगल में?
न पढ़ते-लिखते, न ढंग से रहते;
कभी जंगल से बाहर निकलो,
पढ़ो-लिखो, ढंग से रहना सीखो।"
कुछ न बोला, कुछ भी न बोला;
देखा और वापस जंगल की ओर चलाI
फिर रोका उसको, पूछा कुछ तो बोलो;
तुम्हारी सुंदर दुनिया! इसको देखूँ ?
क्या सच में है यह सुंदर,
हर चेहरे पे मुखौटा है,
खुद को सभ्य दिखाते हो,
सच में तो हमसे ज्यादा जंगली हो।
नित नये अत्याचार, व्यभिचार,
लूट-खसोट और दुर्व्यवहार;
क्या यही निशानियाँ हैं,
तुम्हारी सभ्यता की?
न बाबा न! तुम्हारी दुनिया से अच्छा
मेरा प्यारा जंगल है,
तुम्हारी स्भ्यता से अच्छा
मेरा जंगली होना।
मैं ठगी-सी देखती रही,
वो जंगल में गायब हो गया।