रूह-ए-कश्मीर
रूह-ए-कश्मीर
ख़ुदा ने जिस कश्मीर को जन्नत जैसा खूबसूरत बनाया
इंसान ने उसी कश्मीर को आज दोज़ख जैसा बना दिया।
एक अर्से से वादी में आज़ादी का खेल चल रहा है
कई बरसों से नफ़रत की आग में दिल जल रहा है।
ज़िहाद के नाम पर फ़साद करने वालों सुनो ज़रा
खुद अपने ही घरों को तुमने अपने हाथों जलाया।
जिन लोगों पर पागल होकर पत्थर फेंक रहे हो तुम
जब बाढ़ आई तब इन्हीं लोगों ने था तुमको बचाया।
सियासत के नाम पर हर जगह जो तिजारत हो रही हैं
मादर-ए-वतन से आज क्यों इतनी बग़ावत हो रही हैं।
नेता तो यही चाहते हैं ये बर्बादी यूँही चलती रहे
दहशतगर्दी के साये में यह वादी यूँही जलती रहे।
मज़हब के ठेकेदारों ने ख़ूब मोर्चा संभाल रखा है
मासूमियत के दिल में हैवानियत को पाल रखा है।
खिलौनों की जगह हाथों में बंदूक थमा दी जाती हैं
ज़ेहन में ज़हर भरकर मौत मंज़ूर करा ली जाती हैं।
अब तो ये पहाड़ भी कुछ बोलते नहीं
ख़ून के दाग़ धब्बे खुद पर टटोलते नहीं।
अब तो ये नदियाँ भी कुछ कहती नहीं
बहता ख़ून देखकर बहना बंद करती नहीं।
अब तो ये धुंध भी ज़्यादा देर रुकती नहीं
सूरज की रौशनी से आजकल डरती नहीं।
अब तो झील पर शिकारे भी ख़ामोश चलते हैं
पानी पर चलते हैं, फिर भी जाने क्यों जलते हैं।
कोई कुछ नहीं बोलता अब, सबने जीना सीख लिया हैं
झूठी आज़ादी के लिये, समझौता करना सीख लिया हैं।
सब समझ चुके हैं यहाँ, जिसने भी अपना मुँह खोला
पहना दिया जाता हैं उसे, उसी पल फांसी का चोला।
ख़ुदा ने जिस कश्मीर को जन्नत जैसा हसीन बनाया
इंसान ने उसी कश्मीर को आज जहन्नुम बना दिया।
मुद्दत से वादी में आज़ादी का खेल चल रहा है
शिद्दत से नफ़रत की आग में दिल जल रहा है।
अफ़सोस, के अब तक कोई न समझ सका इस दर्द को
अफ़सोस, के अब तक कोई न पकड़ सका इस मर्ज़ को।
अपनी बदहाली पर कई बरसों से रो रहा है कश्मीर
अपने गुनाहों का बोझ सदियों से ढ़ो रहा है कश्मीर।।