अपना नहीं होता
अपना नहीं होता
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एक वक़्त है जो खत्म नहीं होता
एक फासला है जो पूरा नहीं होता।
एक तू है मुझ में
और मैं हूँ तुझ से।
लेकिन ये ज़ालिम ज़माना
कभी अपना नहीं होता।
यूँ याद तेरी हर वक़्त आ ही जाती है
कहती हूँ कुछ और कुछ नही होता।
एक तू है और मैं हूँ
तेरी बात के दरमयान,
लेकिन ये बातों के सिलसिलों का कभी अंत नही होता।
माना है तुझे गरूर अपना मन से
तेरी हर अदा को तन से
फिर भी कभी तू मुझ पर मोम नही होता।
मालूम है मुझे भी और तुझे भी
चलना है बस कुछ इतना ही
लेकिन मेरे प्यार और तेरी चाहत के मौसम का
कभी अंत नही होता...