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Upasna Siag

Abstract

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Upasna Siag

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प्रेम की पराकाष्ठा

प्रेम की पराकाष्ठा

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मन भागता है

अनन्त की ओर

अनदेखे -अनजाने

पथ की ओर

निर्वात की ओर !

देखता है

प्राणों का देह से

विलग होना

और

देखता है

देह को विदेह होते !

यह देह का

विदेह हो जाना

मन का अनन्त की ओर

भटकना,

प्रेम की पराकाष्ठा है।

शायद !


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