मेरा ख़त...मेरी ज़ुबानी
मेरा ख़त...मेरी ज़ुबानी
आज बड़ी बेचैनी सी है
ख़त लिखने का सोचा है।
अपनी हसरतों ख़्वाहिशों को
बयान करने का सोचा है।
कोरे काग़ज़ पर इस दिल का
दर्द तुम्हें लिख डाला है।
तेरे इंतज़ार की बेक़रारी
शब्दों में पिरो सा डाला है।
मैं जानती हूँ तुम भी तो
मेरे लिए विचलित होंगे।
तभी तो ये ख़त भेज मैंने
तुम तक खुद को भिजवाया है।
जब खोलो तुम ये ख़त तुम्हें
साँसों की मेरी ख़ुशबू आए।
जब ख़त हो तुम्हारे हाथों में
मेरे होने का एहसास आए।
बड़ी तसल्ली से तुम मेरे
लिखे हुए ख़त को पढ़ना।
एक एक शब्द पढ़ो जब तुम
मेरा चेहरा तेरे सामने आए।
किसी शब्द की फैली स्याही
जब देखना तुम,समझ जाना।
अश्क बहे थे आँखों से जब
लिखा था दिल का अफ़साना।
पढ़कर फिर तुम इस ख़त को
तकिए के नीचे रख देना।
ख़्वाबों में ही सही मगर
तेरा मेरा मिलना हो पाए।
ख़त मिलते ही तुम उसका
जवाब तुरंत ही लिख देना।
इंतज़ार रहेगा, मुझको ख़त का
पर देने तुम खुद ही आना।