मुसाफ़िर
मुसाफ़िर
गली-गली, शहर-शहर,
चलता गया वो बेखब।
कभी ईधर, कभी उधर,
भटकता गया वो डगर-डगर।
अजीब धुन को लिए,
पार किया नदी-नहर।
ना रुका कभी, ना झुका कभी,
बैठा कहीं न दो पहर।
उड़ता गया वो लहर-लहर,
कभी इस नगर, कभी उस नगर।
बनके परवाना बेखबर,
रखी कभी ना अपनी खबर।
संभल-संभल कर आ गया,
वो अपनी मंज़िल पा गया।
हर ठोकर हार गया,
उसका सपना जीत गया।