पेड़ चलते हैं
पेड़ चलते हैं
उन्होंने कभी कहा नहीं
पर वे चलते रहे,मीलों मील
बड़ी लम्बी दूरियाँ तय करते रहे,बरसों बरस
हमने जाना ही नहीं
उनका चलना दौड़ना उड़ना तैरना
और अपने कुनबे सहित बस जाना
दूर दराज़ के गांवों शहरों में
उनके बच्चे बच्चों के बच्चे
खेलते थे हवा के साथ
सर्र सर्र और फुर्र फुर्र का खेल
चिड़िया के साथ साथ
पंख पसारे निकल जाते
उनकी दोस्ती नदी नालों से भी थी
वेबूँदों की प्रतीक्षा का अंतिम दिन
नखलिस्तान सा लगे है
नए नए रस्तों पे नोकाएँ बन
और तिनके का सहारा पा
कर लेते बसेरा,अमुक अमुक गांवों की
अनजानी छानी छप्पर के नीचे
चुपके से बड़े होने लगते वहीँ
एक दोस्ती की गन्ध के साथ साथ
पेड़ों को सब पता रहता
कहाँ कहाँ पहुँच गए उनके बच्चे
बच्चों के बच्चे
अजनबियत की भीति को नकार
पेड़ों का चलना रहस्मय नहीं
प्रीतिकर है
[