तुम और मैं
तुम और मैं
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बारिश की बूंदों-सा परस कर
तब तुम लौट जाते हो…तो…
मैं सोंधी खुश्बू की तरह
फ़िज़ाओं में बिखर जाती हूँ।
बादलों से आंख मिचौली खेलते
सूरज की किरणों में
सतरंगी सपनों के
इंद्रधनुष टांग आती हूँ।
मन की सूनी देहरी पर
यादों की रंगोली सजाकर,
मीलों तक फैले सन्नाटे से
आहट तुम्हारी ढूंढ़ लाती हूँ।
अपने वजूद से तुमको सिरज कर
रेशा-रेशा छीजकर
ज़र्रा-ज़र्रा पिघल कर,
सागर में बूंद-सी
समाहित हो जाती हूँ।
बारिश की बूंदों-सा परस कर
जब तुम लौट जाते हो…..।