फसाना
फसाना
फिर से लौटके बिता हुआ जमाना नहीं आता
मेरे लबों पे कोई फसाना नहींं आता।
इन्कार का डर दिल से भगाना नहीं आता
वे सोचते हैं हमें दिल लगाना नहीं आता।
हाथ जोड़कर बाँटते हैं वे हसरत भरी मुस्कान
हमें तो पल भर भी मुस्कुराना नहीं आता।
पाँच सालों में बन जाते हैं अदना से अरबपति
चंद सिक्के भी हमें ठीक से कमाना नहीं आता।
लूटते रहते हैं जी भरके सरे आम दिन-रात वे
जुल्म के खिलाफ हमें आवाज उठाना नहीं आता।
जाएंगे वे ‘दिल्ली’ तो तकदीर ‘हमारी’ निखरेगी
बेसब्र दिल को और इत्मिनान दिलाना नहीं आता।।