विरह की वेदना
विरह की वेदना
कब से तेरे इंतजार में
नैन भिगोये
बैठी हूँ,
हाल
बुरा है,
होठ हैं सुखे,
केश भी
बिखरे-बिखरे
हैं,
धुल गये
आँखों के काजल,
चेहरे पर
बस दुखड़े
हैं,
एक वो हैं
जिन्हें
हमारी
खबर ही
नहीं,
बिन उनके
दिल लगता भी
नहीं, कहीं
वो
सनम हरजाई
हो गये,
मुझमें ही
मेरी परछाई
हो गये,
अब वक्त भी
कटता नहीं
विरह की
वेदना में,
वो ही
समाये है,
मेरी चेतना में।।