ना रहा
ना रहा
किसी का भी किसी पर,ऐतबार ना रहा,
नफरत की लगी आग यहाँ,अब प्यार ना रहा।
सियासत के खेल में,कठपुतलियाँ हैं हम सभी,
खुद पर भी हमारा,अब इख्तियार ना रहा।
तनाव है, खिंचाव है,फिजाओं में भरा जहर,
अछुता ऐसे माहौल में,कोई परिवार ना रहा।
गिरवी पड़े है दिमाग,दिल पत्थर के हो गए,
दुश्मनी में व्यस्त सारे,कोई यार ना रहा।
भेड़चाल चल रहे हैं,बात-बात पे मचल रहे हैं,
इन्सानियत से अपना,अब सरोकार ना रहा।