गणतंत्र
गणतंत्र
कुछ ऐसे लोग
जिन्हें गिना जा सकता है
उँगलियों पर
जिनकी संख्या भले कम है
मध्यम वर्ग की तुलना में
जो नहीं है हिस्सा
गरीबों की
अंतहीन भीड़ का
लेकिन कतई कम नहीं है
संख्या उनके
रुपयों की
जो अनगिनत हैं |
जो मात्र सुविधाभोगी है
उनकी सुविधाए
टिकी है जिनकी
रीढ़ पर
ढो- ढ़ोकर
अपनी विवशता,
वो लोग चुप है
कुछ है जो
गाहे-बगाहे कह देते है
अपनी लाचारी को
कुछ कभी कभार
मचाने लगते है
शोर
कोई एक्का -दुक्का
बरस भी पड़ता है
कभी -कभी!
ये कहना
ये शोर मचाना
ये बरसना
एक क्रिया मात्र है
जिसकी कोई प्रतिक्रिया नही
ये क्रियाएं
महानगर की सडकों पर
दौड़ती उन कारों -सी है
जिनके शीशे बंद हैं
जिनकी ए.सी.
कभी नही महसूस करने देती
बाहर की गर्मी
जो 45 डिग्री तापमान
में भी
महसूसते है
वातावरण को
सौम्य -शीतल!
कुछ बिलकुल बेफिक्र
बुद्ध -से शांत गण;
कुछ दबे-कुचले
डरे -सहमे गण;
कुछ अवसादग्रस्त
कमी को अधिक मान
जीने को अभ्यस्त गण;
कुछ बेझिझक ,बिंदास गण;
कुछ निरुद्देश्य
सब कुछ वक्त पर छोड़
निढ़ाल पड़े गण!
ऐसे अस्त- व्यस्त ,
विचित्र गणों का
एक ऐसा तंत्र
जो यत्र-तत्र फैला भी है
एक बिंदू में सिमटा भी है ,
बेहद उलझा -उलझा सा
हमारा गणतंत्र !