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Anupama Gupta

Tragedy

4.5  

Anupama Gupta

Tragedy

गणतंत्र

गणतंत्र

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359



कुछ ऐसे लोग 

जिन्हें गिना जा सकता है 

उँगलियों पर 

जिनकी संख्या भले कम है 

मध्यम वर्ग की तुलना में

जो नहीं है हिस्सा 

गरीबों की 

अंतहीन भीड़ का 

लेकिन कतई कम नहीं है 

संख्या उनके 

रुपयों की 

जो अनगिनत हैं |

जो मात्र सुविधाभोगी है 

उनकी सुविधाए 

टिकी है जिनकी

रीढ़ पर 

ढो- ढ़ोकर 

अपनी विवशता,

वो लोग चुप है 

कुछ है जो 

गाहे-बगाहे कह देते है

अपनी लाचारी को

कुछ कभी कभार 

मचाने लगते है 

शोर 

कोई एक्का -दुक्का 

बरस भी पड़ता है

कभी -कभी!

ये कहना 

ये शोर मचाना 

ये बरसना 

एक क्रिया मात्र है 

जिसकी कोई प्रतिक्रिया नही 

ये क्रियाएं

महानगर की सडकों पर 

दौड़ती उन कारों -सी है 

जिनके शीशे बंद हैं 

जिनकी ए.सी. 

कभी नही महसूस करने देती 

बाहर की गर्मी 

जो 45 डिग्री तापमान 

में भी 

महसूसते है 

वातावरण को 

सौम्य -शीतल!


कुछ बिलकुल बेफिक्र 

बुद्ध -से शांत गण;

कुछ दबे-कुचले 

डरे -सहमे गण;

कुछ अवसादग्रस्त 

कमी को अधिक मान

जीने को अभ्यस्त गण;

कुछ बेझिझक ,बिंदास गण;

कुछ निरुद्देश्य 

सब कुछ वक्त पर छोड़ 

निढ़ाल पड़े गण!


ऐसे अस्त- व्यस्त ,

विचित्र गणों का 

एक ऐसा तंत्र 

जो यत्र-तत्र फैला भी है 

एक बिंदू में सिमटा भी है ,

बेहद उलझा -उलझा सा 

हमारा गणतंत्र !



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