उलझन
उलझन
तन्हाइयों ने मुझको जीना सिखाया
ए जिंदगी तेरा बहुत शुक्रिया।
आज मुझ सा खुशनसीब कोई नही
दुनिया के मेले मे भी खुद को मैने सबसे यूँ अलग पाया ।
बहुत दिल्लगी है तुझसे ए जिंदगी
अब तो दर्द तू और दवा भी तू ही हैं।
अमानत है ये जिंदगी
ये साँसे जरिया बन गई
मुकम्मल जहाँ पाने का।
मेरी इनायत मेरा वजूद तुमसे है
तुमसे ही कायनात की सारी खुशियाँ ।
अपने दामन में सिमटी हुए कई यादें
आँखों से आज भी अश्क बनकर छलक आती है ।
अक्सर ये मान बैठती हूँ की अपनी गुत्थी जिंदगी
की खुद ही अपने आप सुलझा ली है।
खुश होती हूँ की मैने जिंदगी सँवार ली ।
मगर बिना आहट के ही खुद ब खुद जिंदगी की उलझनों में
आहिस्ता आहिस्ता और ज्य़ादा इसमे उलझकर
रह जाती हूँ