रेखाएँ
रेखाएँ
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हाथों में लगाकर लेप, मैंने मिटा दी रेखाएँ
अपने बाजुओं के दम से खींचता हूँ रेखाएँ।
जहाँ पर ताप ने सोख ली है नमी धरती की,
मैं बादल बन बरसकर सींचता हूँ रेखाएँ।
कहीं पर मिट्टी है और है उड़ती धूल के साये,
मगर आशियाँ में तिनकों से सजाता हूँ रेखाएँ।
जोर कितना हो हवा में, तूफानों से नहीं डरता,
कश्तियों के भी पतवार से रचता हूँ रेखाएँ।
मेरे नशे मन में फैले डोरों के रंग पे ना जाओ,
रौशनी गुल है, अंधेरे में भी खींचता हूँ रेखाएँ।