तुम तुम ही हो
तुम तुम ही हो
मेरी हर बात पर देते हो
औरों की तरह तुम भी झूठे हो
कितनी लहरों को छुपाया तुमने
सागर के जैसे तुम भी गहरे हो।
कितने आँसू है जो छिपाये तुमने
बादल के जैसे तुम फिर भी सूखे हो
कितने तूफानों को समेटा है तुमने
पवन के जैसे तुम भी हल्के हो।
कितनी आग को समेटा है तुमने
हिम के जैसे तुम फिर भी शीतल हो।
कितने इल्ज़ामों को समेटा है तुमने
धरती के जैसे तुम फिर भी शांत हो।