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Sourabh

Others

2.5  

Sourabh

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सफर मंज़िल ज़िन्दगी

सफर मंज़िल ज़िन्दगी

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"सफ़र , मंजिल, ज़िन्दगी " जन्म लेते ही शुरू हो जाती है, सफर ज़िन्दगी का...हम निकल पड़ते हैं अनजाने  रास्तो से मंजिल की तलाश में... इस सफ़र में ज़िन्दगी  मुस्कुराती है, कभी माँ के आंचल में, कभी पिता की गोद में, पाती पहली मंजिल नेह की... इस सफ़र  में जिंदगी मुस्कुराती है, यारों के साथ, बारिश में भीगते हुए, लटटू, कंचे, क्रिकेट के जोश में, आइस -पाइस में, पाती दूसरी मंजिल मासूम बचपन की अठखेलियों के साथ... इस सफ़र  में ज़िन्दगी  मुस्कुराती है, जवानी की दहलीज़  पर, सपनों को साकार करने के लिए, किसी  के बाहों में जीने के लिए, किसी  के इश्क़ में पड़ जाने को, किसी के  बिखरी लट में उलझ जाने को, गुलमोहर सी खिल जाने को, पाती है तीसरी मंजिल तजुर्बे संघर्ष की खूबसूरत भविष्य के लिए... इस सफर में ज़िन्दगी  मुस्कुराती है फ़िर , अपने अंतिम सफ़र  पर जाते हुए , यहाँ वो मद्धम रौशनी  में धुँधली आँखों से देखती है , वो बचपन जो पीछे छूट गया, वो जवानी जो कुछ काम, कुछ इश्क़ में गुजरा , याद करती है उन तजुर्बों को, उन दिनों को जो जिये उसने ज़िंदादिली  से  हर सुख महसूस किया, हर दुःख  झेला, जो सीखा उसे बाँट देती है, नई पीढ़ी के साथ,  अंतिम चौथी मंजिल के बाद ज़िन्दगी फ़िर निकल पड़ती है, नए सफ़र में, नए नाम नए चेहरे के साथ..


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