पापा और मैं
पापा और मैं
बचपन की यादें कभी भुलाई नहीं जातीं
पापा के साथ मस्ती मुझे अक्सर याद आती
कंधे पे चढ़कर वो सैर को जाना
पेड़ों से पत्ते और फल तोड़ लाना
ऊपर से भाई को अंगूठा दिखाना
मस्ती में झूमना और उस को चिढ़ाना
ज़िद में वो लेटना और रोना चिल्लाना
पापा का फिर टॉफी दे के मनाना
फिर भी न मानना और ज़िद पे अड़ जाना
पापा का वो थप्पड़ से शांत कराना
स्कूल का काम जब बहुत हो जाना
पापा का फिर हमको वो गणित पढ़ाना
पढ़ते पढ़ते रात का दस बज जाना
पापा की ही गोद में हमारा सो जाना
स्कूल से वो डांट खा के रोते हुए आना
पापा का वो प्यार से हमें समझाना
साइकिल पे स्कूल अपने साथ ले जाना
स्कूल का वो डर मेरे मन से भागना
टीचर की शिकायत पे अपने कमरे में बुलाना
शरारतों की बात पे उन को गुस्सा आना
पढ़ाई का महत्व हमें तब समझाना
शरारतें न करने की कसमें दिलाना
मम्मी की डांट से अक्सर बचाना
ज़िद हमारी मान कर पार्क ले जाना
मम्मी जब कहती बाहर का नहीं खाना
चुपके से हमें बाहर खाना खिलाना
सोने से पहले हमसे पैर दबवाना
थक जाने पे अपने साथ सुलाना
चंदा मामा की हमें कहानी सुनाना
तारों को गिनना, उनके बारे में बताना
अच्छे से कॉलेज में एडमिशन दिलाना
ओवरटाइम कर के कुछ पैसे जुटाना
थके हुए आना, अपना दर्द छुपाना
हर मोड़ पर मेरा साथ निभाना
अच्छी सी लड़की से फिर शादी कराना
मेरे बच्चों को अपनी गोद में खिलाना
काम की वजह से जब लेट घर आना
पापा का गुस्से में फिर डांट पिलाना
मेरे बच्चों का अब बड़ा हो जाना
यही जीवन चक्र अब मेरा हो जाना
पापा को अब भी मेरा बच्चा नजर आना
पापा और मेरा बस यही है फसाना
पिता और बेटे का तो नाता है पुराना
अच्छी तरह से इस रिश्ते को निभाना
जीवन की दौड़ में इतना दूर न जाना
पापा को अपने कभी भूल न जाना