तंज कस ले
तंज कस ले
जूझना जीवन है
अडिग पर्वत के पीछे
कहीं धूप के बादल मिलेंगे,
ताला खोल तो सही
तकदीर पे लगे जंग का..!
छंटेगा नाउम्मीदगी का बादल
तू कभी थोड़ा मेहनतकश बन तो सही,
बीज तो बिखेर कुछ ज़िंदगी की गीली मिट्टी में,
पसीने की नमी दे तो सही,
फूल हज़ारों ना खिले तो कहना..!
तंज कस ले हरीफ़ों के जुमले को मात देकर,
मुरझाए लम्हों को उठाकर हौले से,
रख दे तप्त रेत की बर्फीली अटकलों पे
सहरा में आबशार को आगाज़ दे तो सही..!
तय है एक अंजाम ज़िंदगी का कदम
बढ़ा मंज़िलों को रास्तों की कमी तो नहीं..!
बन खुद का रचयिता कंदर ले कुछ हमकदम,
है रात लंबी हारे हुए हौसलों की
ये भी गुज़र जाएगी महज़ रात ही तो है;
तू जागने का हुनर सीख तो सही॥