बर्तनों का खटराग
बर्तनों का खटराग
बर्तनों के खटराग में
मैं सुनता हूँ
मनुष्य के भीतर की जिजीविषा
आदिम भूख से लड़ने की आहट
सुबह-सुबह रसोई के भीतर की
यह चनचनाहट
मुझे भरोसा दिलाती है कि
मनुष्य अपनी क्षुधा की
तृप्ति के लिए प्रयासरत है
एक और नए दिन के
संघर्षों में उतरने से पूर्व
वह कुछ दाने अपने उदर में
रख लेना चाहता है
काम पर जाने से पूर्व
वह अपनी हैसियत
और भूख के अनुसार
अपनी खुराक ले लेना चाहता है
मनुष्य हारेगा नहीं अपनी लड़ाई
चंद दानों के भरोसे
वह जीत लेगा दुनिया
वह भूखा नहीं रहेगा
और भूख के खिलाफ
लड़ी जा रही लड़ाई
चाहे जिसकी हो
अंततः वह पूरे मानवता की है
उसमॆं शरीक होंगे दोनों ही चूल्हे
वे जिनसे धुआँ उठ रहा है
और वे जिनसे धुआँ उठना है
चूल्हों की इस साझेदारी से
एकमेव हो जाएगा
आसमान का रंग
मैं सोचता हूँ
भूख और स्वाद की
जुगलबंदी के लिए
कितना ज़रूरी है
दुनिया की प्रत्येक रसोई में
सुबह-शाम
बर्तनों का यूँ आपस
में भिड़ते रहना
कितनी अजीब
और बेसुरी लगती है
घर में खाली बरतनों की चुप्पी
और यह चुप्पी किसी
घर में दाखिल न होने पाए,
सुबह सुबह हो रहे
बर्तनों के खटराग में
मैं पाता हूँ यह विश्वास
दुनिया के हर घर
और हर घर की
दुनिया के लिए
समान रूप से ।