लोगों ने सियासत से जब से प्यार
लोगों ने सियासत से जब से प्यार
लोगों ने सियासत से
जब से प्यार कर लिया।
नज़रो को अपनी
खौफ का हथियार कर लिया।
मशगूल हो गए थे
वे साजिश तमाम में।
षडयंत्री हवाओं से
बस इज़हार कर लिया।
वे घूमते दिल में लिये
मज़हबी खंजर।
पर देख ना पाते थे
अपने मुल्क का मंज़र।
इन साजिशो से आपको
क्या हो गया हासिल ?
क्यूं आग के दरिया से
तुमने प्यार कर लिया !
दीवाने इस मुल्क के
दीवाने ही रहते।
कोई परेशानी थी
दिल खोलकर कहते।
सोचा नही तूने
कि अंजाम क्या होगा ?
क्यूं रच के तूने साजिशें
मिस्मार कर लिया !
हर कौम भी अपनी थी
हर धर्म भी अपना।
हर शख्स की आंखो में था
बस प्यार का सपना।
राम में रहीम में
तू देखता था रब।
हर कौम की नफरत का
क्यूं उड़ कर लिया !