चैन की नींद
चैन की नींद
सोता था चैन की नींद में,
मां जब भी लोरी सुनाती थी।
होते सुबह वह गोद में लेकर,
पुचकार के मुझे उठाती थी।
उसके जिगर का टुकड़ा था मैं,
आंखों का तारा मुझे बुलाती थी।
मेरे गिरने पर वह खुद रोती पर,
मुझे कभी भी नहीं रुलाती थी।
हर सुबह आज भी मैं,
मां की यादें याद करता हूं।
वह दूर है बहुत मुझसे पर,
मैं हर अंगड़ाई में आहें भरता हूं।
बीत जाती रातें बस लोरी में,
भोर होतें ही मुझे जगाती थी।
जाग गई है कलियां सारी और,
कमल के फूल भी खिल गए हैं।
चिड़िया भी चहचहा रही है और,
किरणें चारों दिशाओं में फैल गए हैं।
जाने क्या कह कह कर वह,
हमेशा अपनीं बातों से बहलाती थी।
हाँ वो मेरी माँ थी जो,
मुझे चैन की नींद सुलाती थीं।