दर्द-ए-गम
दर्द-ए-गम
रह रहकर जब दर्द-ए-गम उबलता रहता है
दिल लगाया नहीं जाता, दिल लग जाता है
रूह में गम दबाया नहीं जाता, गम दब जाता है।
रह रहकर जब दर्द-ए-गम उबलता रहता है
रह रहकर जब दर्द-ए-गम उबलता रहता है
होठों पर अंगार दिल में लावा जलता रहता है
तब ऐसे ही चाँद की रौशनी से, सूरज निकलता रहता है।
रह रहकर जब दर्द-ए-गम उबलता रहता है
रह रहकर जब दर्द-ए-गम उबलता रहता है
जीने का सलीखा नहीं सिखाती, तमाम उम्र ज़िंदगी
ज़िंदगी का पाँव दिन की तरह, छोटा होता रहता है।
रह रहकर जब दर्द-ए-गम उबलता रहता है