एक सोच बस
एक सोच बस
पीरों की मजारों पर चादर चढ़ाने वालों को,
क्यूँ देहरी पर बैठा ठिठुरता फकीर नहीं दिखायी देता|
मंदिर की निर्जीव मूर्ति को रेशम से सजाने वालों को,
क्यूँ पगली भिखारन का उधड़ा बदन नहीं दिखायी देता|
टनों दूध से नहलाते फिरते हैं पत्थर की ऊँची मूरत को,
क्यूँ नाली से बहता दूध पीता बच्चा नहीं दिखायी देता|
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे के ख़ज़ाने भरने वालों को,
क्यूँ आत्महत्या करता कोई ग़रीब नहीं दिखायी देता|
गीता क़ुरान का दम भर हिन्दु मुसलमान बनने वालों को,
क्यूँ कहीं भी बस एक अदद इंसान नहीं दिखायी देता|