माँ भारती
माँ भारती
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माँ भारती का दृश्य दर्पण देख मन हितेश है
मन अर्पण, प्राण अर्पण, करना अभी शेष है।
गड गड़ागड़, गड़ गड़ागड, बादलों की गुंज है
मेघ बरसे दन दना दन, अब खुशी हर कुंज है।
कर्म कर्मठ है प्रगति पे, पर लक्ष अभी शेष है
माँ भारती का दृश्य दर्पण देख मन हितेश है।
श्वेत धातु से सुसज्जित उच्च शीश ये हिम्र है
तिंहु और है चरण पखारे, शुद्ध शीतल नीर है।
ठंडी पवन से है ख़ुशी, उड़ते माँ के केश है
माँ भारती का दृश्य दर्पण देख मन हितेश है।