क्या खोया, क्या पाया (गज़ल)
क्या खोया, क्या पाया (गज़ल)
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सोचेंगे क्या खोया है, क्या पाया है अभी तक,
देखेंगे क्या खोया है, क्या पाया है अभी तक।
शिकवे हैं तुझे कितने, ये पूछेंगे सभी से,
पूछेंगे क्या खोया है, क्या पाया है अभी तक।
बातें ये सभी मन की, वो बोलेंगे ख़ुदा से,
बोलेंगे क्या खोया है, क्या पाया है अभी तक।
होठों पे हमारे भी, जो हैं गीत उन्हीं के,
गायेंगे क्या खोया है, क्या पाया है अभी तक।
बैठेंगे अकेले जो, कभी शाम सुहानी,
खोजेंगे क्या खोया है, क्या पाया है अभी तक।