वो नन्ही सी जान
वो नन्ही सी जान
वो एक हँसी देख कर उसका दिल खिल गया
वो बातें उसकी सुन कर जैसे दिल पिघल गया।
वो नन्ही सी जान की आँखों में थे सपने हज़ार
गिर कर उठने की खाई थी उसने कसमें
कई बार।
पर क्या था उसका कसूर, क्या थी उसकी खता
जो अनाथालय में जी रहा था वो होकर सबसे
जुदा।
कोई नहीं था उसके पास जिसे वो अपना कह सके
न था कोई जो उसके सपनों में उड़ान भर सके।
बचपन में ही उसको अकेला छोड़ गए थे
घरवाले उसके कि
अनजान बेचारा बड़ा हुआ सोच कर भगवान को
हुए थे अपने प्यारे उसके।
उसको देख कर सवाल आया कि दिल नहीं
पत्थर से बनी है सबकी जान क्यों
इंसान के रूप में दर दर भटक रहा है शैतान क्यों।